Posted by kamlesh punyark
punyarkkriti.blogspot.com
मूर्खता के बाड़े में विद्वत्ता की कब्र आज मुँहअन्धेरे ही आँखें खुल गई, बजह-बेवजह टोक-टाक करते रहनेवाली श्रीमतीजी के ‘ लिपएलार्म ’ के वगैर ही, तो मन के भीतरी वातावरण में छतिवन के सुगन्धित फूलों की खुशबू तैर गई। लगा कि कोई बहुत बड़ा खिताब जीत लिया आज। अभी इस आनन्द को सहेज़ने की कोशिश में ही था कि देवीजी का फ़रमान आया— “ आज बेड टी का इन्तज़ाम नहीं है। दूध बिल्ली पी गई है रात में ही...। ” ज़ाहिर है कि या तो बाहर जाकर पैकेट वाला दूध लाऊँ या नौ बजे तक ग्वाले का इन्तज़ार करूँ। नौ बजने में चार घंटे देर है। ऐसे में बेहतर लगा कि इसी बहाने मॉडर्न स्टाइल वाला मॉर्निंगवाक का लाभ ले लूँ। मिल्कबूथ भी तो साढ़ेपाँच बजे के पहले खुलता नहीं, इसलिए शुद्ध हवाखोरी के ख्याल से सड़क की ओर जाने के बजाय फल्गु की ओर निकल गया। संयोग से इस साल बारिश अच्छी हुई है, इस कारण फल्गु का रेत बिलकुल साफ-सुथरा है। यह भी संयोग ही है कि अभी तक किसी समझदार नागरिक या नगरनिगम की कृपा नहीं हुई है, जो यहाँ-वहाँ कूड़ों का ढेर लगा दे प्रकृति के लावार...
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