(आलेख तब का है जब धूर्तों और मूर्खों ने ये योजना बनायी थी। उस दिन तो चाटुकारों और दलालों के साथ-साथ निकम्मे सपूतो को भी अच्छा लगा था शायद, किन्तु वर्षों बाद अब इसका विरोध-प्रदर्शन शुरु हुआ है,तो सोचा क्यों न आपकी यादों को भी ताजा कर दूँ। फिलहाल ये भोंचूूशास्त्री की वेदना संग्रह में प्रकाशित हो कर अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है नोशनप्रेस के सौजन्य से। ) ई-पिण्डदान::निकम्मों-सिरफिरों का कर्मकाण्ड महामहिम भोंचूशास्त्री आज सुबह-सुबह अखबार का एक पन्ना हाथ में लिए हुए मेरे दरवाजे पर दस्तक दिये – “ जल्दी से दरवाजा खोलो गुरु और देखो कैसी खबर छपी है । ” किवाड़ खोलते ही अपने पुराने अन्दाज़ में शुरु हो गए – “ वाह ! मुझे तो एकदम से मजा आ गया, ये खुशख़बरी सुन कर कि हमारे बिहार स्टेट टूरिज़्म डेवलपमेन्ट कारपोरेशन लिमिटेड ने एक नयी योजना लॉन्च की है, जो बड़ा ही दिलचश्प है । योजना का नाम है- ई-पिंडदान । पितृभूमि गयाधाम में पितरों की मुक्ति के लिए एक क्रान्तिकारी कदम उठाया गया है सरकार द्वारा, ठीक उसी अन्दाज में जैसे स्वच्छता अभियान के तहत साफ-सुथरे फर्श पर वाइपर-झाड़ू फेरते हु...
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